“ISKCON- द्वारा भगवान शिव के ‘भूतनाथ’ नाम का जो विकृतिकरण किया गया है, उसका कठोर एवं तर्कपूर्ण उत्तर शैव पक्ष प्रस्तुत किया है।”
देखिए— ISKCON के संस्थापक “बुष्टोम” 👉 पादु” कितने बड़े मूर्ख थे!
उनकी मूर्खतापूर्ण व्याख्याओं का खंडन उपस्थित है—
🔱 प्रथम दावा (ISKCON)
“भूतनाथ का अर्थ मंदबुद्धि व्यक्तियों के आराध्य।”
🔱 शैव-पक्ष से खंडन—
अमरकोष (स्वर्गवर्ग/२१) में स्पष्ट लिखा है—
“भूतेश” — शिव, जो समस्त भूतों अर्थात् समस्त तत्त्वों के अधिपति हैं।
यहाँ “भूत” का अर्थ केवल पंचभूत नहीं, बल्कि संपूर्ण ३६ तत्त्वात्मक जगत है।
अतः शिव = भूतनाथ = अखिल विश्वतत्त्व के ईश्वर।
श्रुति भी यही कहती है—
“ईशानः सर्वविद्यानाम् ईश्वरः सर्वभूतानाम्।”
(तैत्तिरीय आरण्यक, १०वाँ प्रपाठक)
अर्थ— शिव ही समस्त विद्या (६४ कलाएँ) और सभी भूत (३६ तत्त्व) के अधिपति हैं।
अतः — शब्दकोश + श्रुति दोनों प्रमाणित करते हैं कि शिव ही भूतनाथ हैं।
जबकि ISKCON का कथन कि “भूतनाथ = मंदबुद्धियों के आराध्य”
श्रुति और कोश— दोनों के विपरीत होने से पूर्वमीमांसा (१/३/३) अनुसार स्वतः खंडित हो जाता है।
🔱 “भूतनाथ” शब्द का वास्तविक अर्थ
भूत (भूत) — सृष्ट जीव, पंचभूत, अस्तित्व, तत्त्व।
नाथ — स्वामी, अधिपति, संरक्षक।
आध्यात्मिक अर्थ—
भूतनाथ = समस्त सृष्टि, समस्त तत्त्व व समस्त जीवों के ईश्वर — परमेश्वर शिव।
शिव-महिम्नः स्तोत्र (श्लोक २०)— “भूतानां प्रभवोऽप्ययस्तव महादेव!”
अर्थ — हे महादेव! आप ही सभी भूतों के उत्पत्ति और प्रलयकारण हैं।
🔱 दूसरा दावा (ISKCON)
“भूत का अर्थ कभी-कभी प्रेतात्मा होता है।”
🔱 शैव-पक्ष से खंडन—
“भूत” = तत्त्व, जीव, पंचभूत।
“भुत (भुत-प्रेत)” = प्रेत, पिशाच।
दोनों में स्पष्ट अंतर है।
हाँ, परमेश्वर शिव तो प्रेत–पिशाच से लेकर ब्रह्मा-विष्णु तक सभी के आश्रयदाता हैं—
पर “भूतनाथ” कभी भी “प्रेतों के स्वामी” नहीं होता।
अतः दूसरा दावा भी अवैदिक एवं असंगत।
🔱 तीसरा दावा (ISKCON)
“भूत और असुरों का सुधारक शिव हैं।”
🔱 शैव-पक्ष से खंडन—
केवल "भूत" या "असुर" ही नहीं — समस्त चराचर, देव, दानव, मानव, पक्षी, पशु— जो कुछ भी है — सब कुछ शिवतत्त्व में विलीन होता है।
श्रुति प्रमाण—
अथर्वशिर उपनिषद् (५)
“यो योनिंग योनि-मधितिष्ठति ऐको येनेदं सर्वं विचरति सर्वम्…”
अर्थ— यह संपूर्ण ब्रह्मांड उसी एक निराकार शंकर का प्रतिबिंब है। वही सर्वजीवस्वरूप ब्रह्म है।
कैवल्योपनिषद् (८–९)
“स ब्रह्मा स शिवः सेन्द्रः… स एव विष्णुः…”
“स एव सर्वं यद् भूतं यच्च भव्यम्…”
अर्थ— जो भूत है, जो भविष्य है — सब वही परात्पर शिव हैं। उन्हें जानकर जीव मृत्यु से पार हो जाता है।
अतः ISKCON का तीसरा दावा भी अवैधिक एवं खंडित।
🔱 चौथा दावा (ISKCON)
“स्थूलबुद्धि से लेकर विद्वान वैष्णव तक सभी के गुरु शिव।”
🔱 शैव-पक्ष से समर्थन—
यह तथ्य स्वीकार्य एवं वेदसम्मत है।
श्रुति प्रमाण—
वराह उपनिषद् (३/३२)
“शिवो गुरुः शिवो वेदः शिवो देवः शिवः प्रभुः।
शिवोऽहं, म्यहं शिवः, सर्वं शिवादन्यत्र किञ्चन ॥”
अर्थ— शिव ही गुरु, शिव ही वेद, शिव ही देवता, शिव ही प्रभु। सब शिवमय है।
निरालम्ब उपनिषद् (१)
“ॐ नमः शिवाय गुरवे सच्चिदानन्दमूर्तये…”
अर्थ— उन शिवगुरु को नमस्कार, जो सच्चिदानंदस्वरूप हैं। उनके आश्रय से ही मोक्ष मिलता है।
अतः यह दावा वास्तविक एवं शैव-वैष्णव दोनों परंपराओं द्वारा मान्य है।
🔱 अंतिम निर्णय (सार)
भूतनाथ =
वह परमेश्वर जो—
✔ समस्त जीव, जड़, तत्त्व, पंचभूत व विश्व-व्यवस्था के नियंता
✔ सर्वव्यापी, सर्वाधार
✔ समस्त लोकों के पालक
✔ तथा मोक्षप्रदाता
अर्थात् — “भूतनाथ = प्रभु महादेव”
ISKCON के प्रदत्त समस्त दावे
📍 श्रुति-विरोधी ❌
📍 कोश-विरोधी❌
📍 न्याय-विरोधी❌
अतः संपूर्ण रूप से खंडित।
🔱 निष्कर्ष
“शिवः परमेश्वराय नमः”
शिव ही भूतनाथ — समस्त तत्त्वों व समस्त जीवों के नाथ हैं।
✍ लेखन एवं संदर्भ-संकलन
© शौर्यनाथ शैव (ISSGT)

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