☘️ "पशुपति" शब्द का वास्तविक अर्थ और शास्त्रीय व्याख्या। 🌿
🌿 शिवः ॐ तत्सत्।🌿
शास्त्रों के अध्ययन और तत्त्वज्ञान के अभाव में कुछ लोग — विशेषकर कुछ वैष्णव और आर्य नामाज़ी कहलाने वाले —परमेश्वर शिव को “पशुपति” शब्द के द्वारा केवल पशु-पक्षी और जीव-जंतुओं के अधिपति मानते हैं।
परंतु आइए आज वेद, शैव आगम, उपनिषद् और पुराण शास्त्रों से यह समझें कि “पशुपति” शिव का वास्तविक, शास्त्रीय और दार्शनिक अर्थ क्या है।
तो आरंभ करें 👇
🔱 परमेश्वर शिव को “पशुपति” क्यों कहा गया — शास्त्रीय प्रमाण एवं तात्त्विक व्याख्या 🔱
☘️ प्रथम प्रमाण — शिवमहापुराण से। ☘️
इत्याकर्ण्य वचस्तस्य महेशस्य परात्मनः। तथेति चाब्रुवन्देवा हरिब्रह्मादयस्तथा ॥ २२ ॥
तस्माद्वै पशवः सर्वे देवासुरवरा: प्रभोः। रूद्रः पशुपतिश्चैव पशुपाशविमोचकः ॥ २३ ॥
तदा पशुपतीत्येतत् तस्य नाम महेशितुः। प्रसिद्धमभवद्यद्द्धा सर्वलोकेषु शर्मदम् ॥ २४ ॥
📚 (स्रोतः — शिवमहापुराण, रुद्रसंहिता, युद्धकाण्ड, अध्याय ९, श्लोक २२–२४)
भावार्थ:—
सनत्कुमार ने कहा —
जब महेश्वर परमात्मा के इन वचनों को देवगण, हरि (विष्णु) और ब्रह्मा आदि ने सुना, तो उन्होंने कहा — “तथास्तु” अर्थात् ऐसा ही हो। ॥२२॥
इस कारण, हे प्रभो! सभी देवता और असुर उस महाप्रभु के अधीन जीव हैं।
रुद्र अर्थात् पशुपति उन बंधनयुक्त जीवों को मुक्त करने वाले हैं। ॥२३॥
तभी से “पशुपति” यह नाम उस महेश्वर का समस्त लोकों में प्रसिद्ध हुआ —
क्योंकि वे ही जीवों के बंधन को नष्ट कर परम कल्याण प्रदान करते हैं। ॥२४॥
विश्लेषण:—
यहाँ “पशुपति” शब्द का तात्त्विक अर्थ स्पष्ट किया गया है —
“पशु” = बंधनग्रस्त जीवात्मा (जो अज्ञान, माया और कर्मबंधन में फँसा है)।
“पति” = स्वामी, पालक, मुक्तिदाता।
अतः शिव ‘पशुपति’ इसलिए हैं कि वे जीवों के बंधन (पाश) को छिन्न कर उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं।
☘️ द्वितीय प्रमाण — चन्द्रज्ञान आगम से। ☘️
Brahmādyāḥ sthāvarāntāś cha Devadevasy Śūlinaḥ
Paśavaḥ parikīrtyante saṁsāra-vaśa-vartinaḥ ॥१०॥
📚 (स्रोतः — चन्द्रज्ञान आगम, प्रथम पटल)
भावार्थ:—
ब्रह्मा आदि सर्वोच्च देवता से लेकर स्थावर (वृक्ष, पर्वत आदि जड़ रूप) तक सभी प्राणी
देवों के भी देव, त्रिशूलधारी महादेव शिव के “पशु” कहे जाते हैं,
क्योंकि ये सब माया और संसार के प्रभाव में रहते हैं। ॥१०॥
दार्शनिक अर्थ:-
शैवदर्शन के अनुसार —
“पशु” = सीमित, अज्ञानी जीव।
“पाश” = बंधन (अविद्या, काम, क्रोध आदि)।
“पति” = वह परमेश्वर जो मुक्ति देता है।
इस प्रकार, शिव पशुपति हैं — क्योंकि वे ही बंधनयुक्त जीवों के स्वामी एवं मुक्तिदाता हैं।
☘️ तृतीय प्रमाण — परमेश्वर आगम से। ☘️
६०
Brahmādyāḥ sthāvarāntāś ca devadevasya śūlinaḥ ।
Paśavaḥ parikīrtyante saṁsāra-parivartinaḥ ॥
६१
Teṣāṁ patitvād deveśi hy ahaṁ Paśupatiḥ smṛtaḥ ॥
📚 (स्रोतः — परमेश्वर आगम, पटल १२, श्लोक ६०–६१)
भावार्थ:—
(श्लोक ६०)
ब्रह्मा से लेकर स्थावर तक समस्त जीव त्रिशूलधारी देवाधिदेव महेश्वर के पशु हैं, जो संसार के चक्र में घूम रहे हैं।
(श्लोक ६१)
हे देवेश्वरि (पार्वती)! इन सभी जीवों का स्वामी होने के कारण मैं “पशुपति” कहलाता हूँ।
विश्लेषण:—
यहाँ स्वयं महादेव पार्वती से कहते हैं कि —
सभी जीव जन्म-मरण के चक्र में हैं; मैं ही उनका अधिपति और मुक्तिदाता हूँ, इसलिए “पशुपति” कहलाया।
☘️ चतुर्थ प्रमाण — शरभोपनिषद् से। ☘️
Yo līlayāiva Tripuram dadāha, Viṣṇum kavim Soma-Sūryāgni-netrah |
Sarve devāḥ paśutām avāpuḥ, Svayam tasmāt Paśupatir babhūva
Tasmai Rudrāya namo astu ||
📚 (स्रोतः — शरभोपनिषद्, मंत्र १४)
भावार्थ:—
जो खेल-भाव से त्रिपुरासुर को भस्म करने वाले हैं, जिनके नेत्र चंद्र, सूर्य और अग्नि हैं, जिनके सम्मुख सभी देवता भी पशु के समान हो जाते हैं, इस कारण वे “पशुपति” कहलाए —उन रुद्र को नमस्कार।
तात्त्विक अर्थ:—
यहाँ “पशुपति” का अर्थ केवल पशु का स्वामी नहीं, बल्कि समस्त देवों और जीवों के भी अधिपति है। सभी देवता भी उनके नियंत्रण में हैं — अतः वे ही परमेश्वर हैं।
☘️ पञ्चम प्रमाण — अथर्ववेद से। ☘️
भवाशो मन्वे वाम् तस्य वित्तं ययोर्वामिदं प्रदिश् यद् विरोचते ।
यावस्येशाथे द्विपदो यौ चतुष्पदा तौ नो मुञ्चताम् अम्हसः ॥
📚 (स्रोतः — अथर्ववेद संहिता ४.२८)
भावार्थ:— हे भव और शर्व (शिव के रुद्र रूप)! जो कुछ भी इस जगत् में प्रकाशित है, वह तुम्हारे अधीन है। দतुम द्विपद (मनुष्य) और चतुष्पद (पशु) सबके स्वामी हो।
हमारे सभी दुःखों से हमें मुक्त करो।
दार्शनिक अर्थ:—
यह वैदिक प्रमाण बताता है कि “पशुपति” की अवधारणा वेदकालीन है — शिव सर्वजीवों के स्वामी हैं, चाहे वे मनुष्य हों या पशु।
☘️ षष्ठम प्रमाण — यजुर्वेद से।☘️
Yeṣām īśe Paśupatiḥ paśūnām
Catuṣpadām uta ca dvipadam |
📚 (स्रोतः — यजुर्वेद ३.१.४)
भावार्थ:—
पशुपति उन सभी पशुओं के ईश्वर हैं —
चतुष्पद (चार पैरों वाले) और द्विपद (दो पैरों वाले)।
अर्थात् शिव समस्त जीवों — मनुष्यों और पशुओं — के अधिपति एवं नियंता हैं।
☘️ सप्तम प्रमाण — श्वेताश्वतर उपनिषद् से। ☘️
यो देवानामधिपो यस्मिन्लोका अधिश्रिताः ।
य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः ।
कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥१३॥
📚 (स्रोतः — श्वेताश्वतर उपनिषद् ४.१३)
भावार्थ:—
जो देवताओं के भी अधिपति हैं,
जिन पर सारे लोक निर्भर हैं,
जो द्विपद और चतुष्पद जीवों के भी ईश्वर हैं —
हम उसी देवता की उपासना करते हैं।
विश्लेषण:—
यहाँ “देवानाम अधिपः” और “द्विपद-चतुष्पद ईशः” — दोनों शब्द स्पष्ट रूप से शिव के पशुपति रूप को निरूपित करते हैं।
☘️ अष्टम प्रमाण — जबाली उपनिषद् से।☘️
अथ हो एनं भगवन्तं जाबालिं पिप्पलादिः पप्रच्छ —
“भगवन् मे ब्रूहि परमत्त्व-रहस्यं ।
किं तत्त्वम्? को जीवः? कः पशुः? क ईशः? को मोक्षोपायः इति?” ॥ १–२॥
“यथा तृणाशिनो विवेकहीनाः परप्रेष्याः कृष्यादिकर्मसु नियुक्ताः सकलदुःखसहाः स्वस्वामिबध्यमानाः गवादयः पशवः, यथा तत्स्वामिन इव सर्वज्ञ ईशः पशुपतिः” ॥ १५॥
📚 (स्रोतः — जबाली उपनिषद् १–२, १५)
भावार्थ-
पिप्पलादि ऋषि ने पूछा —
“भगवन्! मुझे परम तत्त्व का रहस्य बताइए — तत्त्व क्या है? जीव कौन है? पशु कौन? ईश्वर कौन? और मोक्ष का उपाय क्या?” ॥१–२॥
जाबालि मुनि ने कहा —
“जैसे विवेकहीन, पराधीन, स्वामी द्वारा बंधे हुए, दुःख सहने वाले गोजातीय पशु होते हैं, वैसे ही माया से बंधे सभी जीव ‘पशु’ हैं, और उनके सर्वज्ञ स्वामी ‘पशुपति’ शिव हैं।” ॥१५॥
भावार्थ:-
“पशु” = अज्ञान और कर्मबंधन में फँसा जीव।
“ईश” = सर्वज्ञ परमेश्वर, जो मुक्ति का दाता है।
“मोक्षोपाय” = ईश्वर की अनुभूति और शरण।
☘️ नवम प्रमाण — महाभारत से।☘️
सर्वथा यत्पशून्पाति तैश्च यद्रमते पुनः |
तेषामधिपतिर्यच्च तस्मात्पशुपतिः स्मृतः ॥
📚 (स्रोतः — महाभारत, द्रोण पर्व, अध्याय १७३, श्लोक ८२)
भावार्थ:-
जो सभी जीवों की रक्षा करते हैं और जिनके साथ लीला करते हैं,
वे ही उन सबके अधिपति हैं — इसलिए उन्हें “पशुपति” कहा गया है।
☘️ दशम प्रमाण — सौरपुराण से। ☘️
विष्णुरुवाच —
तस्य प्रसादलेशेन पशोः पाशपरिक्षयः ।
तस्मात् पशुपतिः शम्भुः पशवस्त्वस्मदादयः ॥
📚 (स्रोतः — सौरपुराण, अध्याय २४, श्लोक ४७)
भावार्थ:-
शम्भु की थोड़ी-सी कृपा से भी जीव का बंधन नष्ट हो जाता है।
इसी कारण शम्भु “पशुपति” कहलाते हैं —
क्योंकि हम सब बंधनयुक्त जीव ही उनके अधीन “पशु” हैं।
🌿उपसंहार🌿
इस प्रकार, वेद, आगम, उपनिषद्, पुराण और इतिहास — सभी एक स्वर में उद्घोष करते हैं कि —
> “पशु” = बंधनग्रस्त जीव, में यह
“पाश” = अज्ञान, माया, वासनाएँ,
“पशुपति” = वह सर्वेश्वर शिव, जो इन सबको मुक्त करते हैं।
अतः “पशुपति” शब्द शिव के सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, सर्वनियंता स्वरूप का प्रतीक है —
जो समस्त जीवों के मुक्तिदाता और परमाराध्य देव हैं।
ॐ परमेश्वराय सदाशिवाय नमः 🚩
तथ्य-संग्रह एवं लेखन — © शौर्यनाथ शैव (ISSGT)

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