।। ॐ नमः शिवाभ्याम् ।।
अभ्भोजासनकेशवादिविनुतं कुम्भोद्भवादिस्तुतं साम्बं भक्तजनौधभीषणमलस्तम्बेरमोद्यद्धरिम् । अम्भोरूपमघाग्निदाहशमने सम्बोधसम्पत्प्रदं शम्भुं षट्स्थलरूपिणं भवगिरेर्दम्भोलिकल्पं भजे ।। १ ।।
श्रीपालाद्यमरर्षिसन्नुतपदं पापाटवीपावकं भूपालोत्तमपूजिताङ्घ्रिकमलं तापाद्रिवज्रायुधम् । शापानुग्रहशक्तियुक्तविभवं श्रीपार्वतीशप्रियं मां पायाद् गुरुपञ्चकं शिवकरं साम्बास्यपद्मोद्भवम् ।। २।।
अर्थ:- जिसे कमल के आसन पर आसीन ब्रह्मदेव, केशव आदि देवता नमस्कार करते हैं, अगस्त्य आदि महामुनि जिसकी स्तुति करते हैं, भक्त-जन-समुदाय के आणव, कार्मिक और मायीय त्रिविध मलस्वरूप जो भयावह विशाल गज हैं, मैं उनके निवारक सिहस्वरूप, पापरूपी दावाग्रि के दाह का शमन करने में शीतल जलस्वरूप, संसाररूपी पर्वत का भेदन करने में वज्रस्वरूप उस षट्स्थलरूपों में अवतीर्ण शक्तिसम्पन्न शिव की उपासना करता हूँ ॥१॥
अथर्वणवेदे शौनकशाखायां
मुण्डकोपनिषद् वीरशैवभाष्योपेता
©शौर्यनाथ शैव। ( ISSGT )
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